Monday, December 9, 2013

.......कुछ खवाब चंद उम्मीदें.........



https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEget_O4eQdFFUy7yZsWncobZxG0-8evBLUNyLp5xMLlOhbxVH3KSASpcjzPrkrRRtou_V76F17WUN-7tA6H711pGf99hikhAmnyuU9JZ9AJLb7K8sJgsNfComcNVRADbVFVJnuqUhs1GGk/s1600/images.jpegrain
.......जिंदगी की आपाधापी....इसकी दौडभाग.....
इसके गिले....शिकवे....वक्त ही नही मिल पाया....!
की कुछ जी पाती...! या कुछ वक्त अपने संग बिता पाती...
जब चाहा...इसके दामान से कुछ सीप अपनी झोली मैं डाल लू
तो पता ही नहीं लगा यह कब आगे बढ गयी और दे गयी कुछ...
अधूरे खवाब....कुछ बिखरी हुई उमीदे....जिनके सहारे इसको जीना ....
भी था....खुश भी रहना था..... और इससे मोहब्बत भी करनी थी...
कभी साथी आंसू थे.....तो कभी मेरा खुद का...अकेलापन.. मेरा हमसफ़र था...
कभी गिरती....कभी संभालती....बेमतलब सी...बेमानी सी.....तड़पाती सी....ये
चली जा रही थी....न किसी से कोई गिला....न कोई शिकवा....न किसी की चाहा....
न कोई माझी .... न कोई किनारा....न कोई बंधन.......
...बेतरतीब सा....बस...जीना था....!
और जाना था...उस पार...अकेले..यूहीं...!
पर....यह क्या....!
किसकी आवाज़ है ये....!
किसने मेरा नाम लिया....किसने पुकारा है मुझे...!
यहाँ तो कोई भी नहीं था... मुझे इस तरह पुकारने वाला....!
फिर आज अचानक यह सदा कैसी...!और क्यों .....
मैंने तो किसी को नहीं...बुलाया...किसी को याद नहीं किया..!
वहम होगा...! चलो...तुम्हारे कदम क्यों रुक गए..!
तुम किस सदा मे खुद से...बिछड़ने...को तैयार हो गयीं..
अचानक मुझसे मेरे अंतर्मन ने कहा....

कदम बढाया ही था....की फिर से किसी ने पुकारा...
और इस बार ...मेरा नाम....लिया...!
वो कैसे जानता है मुझे....!
मेरा नाम.....भी.....!
मैंने मुड़ के देखा...
कोई खड़ा था...
बोला ,''कहाँ हो, कब से पुकार रहा हूँ ''...
सुन क्यों नहीं रही हो...!
देखो न तुम्हारे लिए कब से खड़ा हूँ...थक गया हूँ.....!
कितना इंतज़ार करवाती हो....चलो मेरा हाथ पकड़ो...
हमें चलना है.....समय बहुत कम है....हम दोनों के पास..
और सफ़र बहुत लम्बा...तय करना है...! जल्दी करो...
किसी भी सवाल जवाब का वक्त नहीं है ....मेरे पास ...बस मेरा हाथ पकड़ो और चलो...
वैसे भी इतनी देर से मिली हो.....क्या पागल सी देखे जा रही हो.....!
उफ...तुम सोचती बहुत हो .....!
और मै...बस पागल सी ....घूरे जा रही थी...!
और...चल दिया वो मेरा हाथ पकड़ के...
क्यों....मुझे नहीं पता !
कहाँ....मुझे नहीं पता !
कौन है वो....मुझे ये भी नहीं पता ....!
उसका हाथ मैंने एक बार भी छोड़ने की कोशिश नहीं की...
.... उसका साथ मुझे बहुत अच्छा लगा...
.....मैंने कोई सवाल भी नहीं किया....!
पर मै बहुत ख़ुश थी...वो सच्चा था....!
वो मुझे प्यार करता था....बहुत....!
बेरंग सी...उदासियों सी शाम बनी ये जिंदगी...में
........... उसके साथ बहुत सारे रंग हैं...!
...उसके साथ बहुत सारे उजाले हैं ..!
...........उसके साथ बहुत सारे खवाब हैं...!
उससे जुडी बहुत सारी उमीदे हैं....!
.....उसके साथ जिंदगी बहुत खूबसूरत है....मुझे उसके साथ....
...बहुत दूर सफ़र पे जाना है...बहुत दूर....कहाँ...??
पता नहीं...शायद बहुत दूर....!!

Friday, April 29, 2011

कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये

मुझे क्या चाहिए, क्यों कब और कैसे?
ये बताने के लिए मेरे साथी शब्द ही तो ह,
मुझे  , जो दो पल बचे ह 
उनमे  तुम्हारा साथ चाहिए
 क्युकी जी भर के चाहती हूँ जीना
मैने  तपते रेगिस्तान की रेत पर
बहुत से दिन रैन
नंगे पाँव चल कर बिता दिए ह
और अब उन पगों पर छाले पड़ गए ह
मैं जब जब चलती हूँ काँटों पर 
लगता ह की कोई जख्मो पर नमक छिड़क रहा ह
मुझे अब एक शीतल सी फुहार चाहिय्र 
मैं चाहती हूँ की मेरे बच्चो को कुछ बनाने का अपना सपना
मैं तुम्हारे साथ   dekho , तुमारी तकलीफों को अपना कर
अपनी तकलीफे तुम्हारे साथ bantoo 

फिर वो दुःख , चिंता बस चिंतन बन के रह जाएँ
मैने बहुत से ख्वाब देखे ह
पर वक्त थोडा ह
इसलिए  तुमसे एक निवेदन ह
मेरे पास जो समयाभाव ह
उसे समझ कर , तुम जल्द
से जल्द मेरे  सपनो में रंग भर दो
कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये

Sunday, February 20, 2011

फ्रेंड का बर्थडे


 एक बार की बात है, मै उस टाइम कुछ खाश जॉब नहीं कर रहा था, मै उस समे कैफे मै था तब मरे फ्रेंड का बर्थडे आया था, कुछ ये दिसम्बर का महिना था ठड था पर थोडा कम था ता मने उसे बर्थडे विश किया वो भी १२अम को और मेने कभी किसे के लिया १२ बजे नहीं उढा था, इसके लिए मै डाट भी काया पर वो मरी अच्छी फ्रेंड थी, पर मने उसे विश किया था, मुझे लगा क्या हुआ अगर मेने उसे विश किया तो पर मुझे नहीं पता था की ये बात किसे को अची नहीं लगेगी, मने उसका फ़ोन recharge किया उस पर भी मै डट पड़ी मुझे मने सोच अगर मरे पास रुपे है और कभी उसने मुझे से कुछ नहीं कहा यानि की मुझसे कुछ नहीं मागा था और उस दिन पहली बार उसने कुछ मागा मुझसे तो मने सोच चलो कर देते है क्या जाता है दूस्ती मै ये सब चलता है और मोर्निंग मै मै जल्दी उठा और खाना खाया और हजरतगंज जाया वो भी बूके लेने क्यों की मेरे घर के आस पास कोई भी फूल-बूके  वाला नहीं है और न कोई शॉप थी इसलिए मै हजरतगंज गया था, जब मै वह गया तो उसके पास फूल काफी थे और उसने मुझे २-३ बूके भी बने हुए दिखाया और मुझे उसमेसे एक पसंद आया, तो पर वो पहले क बनाये हुए थे मने शॉप वाले से कहा मुझे फ्रेश बूके बना कर दो तो उसने बताया की भी अभी तो नहीं बन पायेगा १ गन्टा लगबग लगेगा क क्यों की जो बूके बनता है वो अभी आया नहीं था तो मेने वेट किया तब वो बूके वाला आया और उसने बनाया मुझे वह लगभग २ घटा हूँ गया था तो मेने जल्दी से लिया और निकला जल्दी से पर मेने उसे संभल कर ले कर उसके घर और निकला और आते हुई मने सोचा क्यों न कुछ मीठा  भी होना चाहिये तो मै एक  शॉप पे रुका और वह से २ ५स्तर लिया क्यों की ये जादा मीठा होता है ओरो चोकोलाटो से तब मने सोच अब ठीक है चलो अब चला जाये और गया तो पर,
जब मै पंहुचा तो मुझे लगा मै कुछ जल्दी आ गया हूँ क्यों की उसने तब तक नहाया भी नहीं था, कोई बात नहीं जल्दी आया तो क्या अब तोबरा जा तो नहीं सकता था ना उसने कहा चलो ठीक है बेटो मेने कहा ठीक है, और बाद  मै कुछ ढेर बाद में २ और फ्रेंड आये मुझे लगा चलो अच है कोई तो आया नहीं तो में आकेला आया सोच कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, और उस क मोम बहुत अची है, एंटी ने भी बात किया और बाद में उन्हूने पूरी और छौले भी बनाया एंटी ने मुझे तो कुछ ज्यदा खिला दिया एंटी ने भी और बाद में jiske बर्थडे में गया था उसने भी और पूरी ले आये और ये बोल कर ड़ाल दिया क इतना तो लडकिय खाती है और वो लोग भी साथ में खा रहे थे, और लास्ट में एंटी ने खीर भी बनाए थे वो भी खाना पड़ा और हम लोगोने काफी ढेर तक बात करी और फिर दुपहर हूँ गया था तब लगा क अब हमें जाना चाहिये फिर में वह से चला गया पर अच्छा तो लगा पर मुझे डाट खानी पड़ी बाद में बस ,,,,
                   

एक अलग दुनिया


 सुझान, डॅनियल, ब्रॅट और बाकि पुलिस कर्मचारी हवेलीसे बाहर आकर विस्फोट हूए कुंएके इर्दगिर्द इकठ्ठा हो गए थे. आश्चर्यकी वजहसे उनकी हरकते एकदम धीमी हो गई थी. यह क्या होगया ? और क्यों होगया ? सब उनके समझ के बाहर था. स्टेला और जाकोबको सुझान दिखतेही उनके चेहरे खुशीसे दमक उठे. वे धीरे धीरे सुझानकी तरफ जाने लगे. लेकिन सुझानका उनकी तरफ कहा खयाल था. उसकी ढूंढती हूई नजर आसपास पत्थरोंके ढेरोंपर जा रही थी.

'' सुझान...'' जाकोबने उसे आवाज दिया.

उसे अब वही उसका भाई है यह बतानेकी जल्दी हो गई थी.

लेकिन वह उसपर यकिन करेगी ?...

उसके मनमें आशंका उठी.

'' सुझान..'' जाकोबने फिरसे आवाज दिया.

लेकिन यह क्या ? सुझान कोई प्रतिक्रिया नही दिखा रही थी. मानो उसे उसका आवाज सुनाई नही दे रहा हो. स्टॆलाने और जाकोबने एकदुसरेकी तरफ असमंजसभरी निगाहोसे देखा.

'' सुझान ...'' अब स्टेलाने, और जोरसे आवाज दिया.

फिरभी सुझानपर उसका कोई असर नही दिख रहा था.

वे अब उसके और करीब गए. जाकोबने अपना हाथ उसके कंधेपर रख दिया. लेकिन आश्चर्य!. उसका हाथ उसके कंधेपर ना टीकते हूए निचे गिर गया. उसका हाथ मानो खोखला हो या उसका शरीर खोखला हो ऐसे उसका हाथ उसके शरीरमें जाकर बाहर आगया. एक बडा आश्चर्यका आघात हूवा हो ऐसे स्टेला और जाकोब एकदुसरेकी तरफ देखने लगे. स्टेलानेभी अपनी तरफसे सुझानका हाथ पकडनेकी कोशीश की, लेकिन उसके हाथमेंभी उसका हाथ नही आया.

फिरसे वे दोनों एक दुसरेकी तरफ विस्मय और आश्चर्यसे देखने लगे.

स्टेला सुझानकी तरफ मुडी और उसे फिरसे जोरसे आवाज देते हूए बुलाने लगी,

'' सुझान..''

''... तूम मुझे सुन रही हो ना ?''

सुझानपर उसके बुलानेका कोई असर नही दिख रहा था.

सुझान, डॅनियल, ब्रॅट और बाकि पुलिस कर्मचारी इधर उधर आश्चर्यसे देख रहे थे. वे मानो सबके सब स्टेला और जाकोबके वहांके उपस्थितीसे पुरी तरह अनभिज्ञ थे.

जाकोब अब डॅनियलकी तरफ गया और उसके सामने जाकर उसका रास्ता रोकते हूए खडा हो गया.

'' डॅनियल..'' जाकोबने उसे आवाज दिया.

'' तूम मुझे सुन रहे हो ना ''

लेकिन डॅनियल मानो जाकोबके वहांके अस्तित्वको नकारते हूए सामने सिधा चलने लगा. और क्या आश्चर्य उसे चलते हूए जाकोबकी कोई बाधा या अवरोध ना होते हूए वह सिधा उसके शरीरसे होते हूए दुसरी तरफ आगे निकल गया. लेकिन जाकोब अपनी कोशीश छोडनेके लिए तैयार नही था. वह ब्रॅटके सामने जाकर खडा हो गया,

'' ऑफीसर... मेरी तरफ देखो '' जाकोब उसके आंखोकी सामने अपना हाथ हिलाकर उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षीत करनेका प्रयास कर रहा था.

लेकिन कोई फायदा नही हो रहा था.

तभी इतने लोगोंमेंसे कोई एक अपनी तरफ देख रहा है ऐसा जाकोबके ध्यानमें आगया. वह एक बुढा था. वह सिर्फ उसकी तरफ देखही नही रहा था बल्की उसकी तरफ देखते हूए मंद मंद मुस्कुराभी रहा था.

'' तुम्हे कोईभी सुन नही पाएगा ... और देख भी नही पाएगा '' उस बुढेने जाकोबसे कहा.

स्टेलाने उत्सुकतावश उस बुढेकी तरफ देखते हूए पुछा, '' लेकिन क्यो?''

'' क्योंकी तुम एक अलग विश्वमें हो '' उस बुढेने कहा.

'' फिर आप कैसे हमें देख सकते हो और सुनभी सकते हो '' स्टेलाने पुछा.

उसपर उस बुढेने जोरसे ढहाका लगाया और कहा,

'' क्योंकी तूम मेरे विश्वमें हो... ... तूम, वह और मै एक अलगही विश्वमें पहूंच गए है ... या यूं कहीए हम मर चूके है ऐसा कहा तो भी चलेगा...... क्योंकी इन लोगोंकी दुनियाके लिए हम मरही चूके है ... कुछ लोग हम जैसोंको आत्मा कहते है तो कोई भूत.... लेकिन यह सच है की हम इन लोगोंको देख सकते है, सुन सकते है लेकिन वे हमे देखभी नही सकते और ना सुन सकते है ''

जाकोबने और स्टेलाने असाहयतावश अपने आसपास खडे लोगोंकी तरफ देखा. सचमुछ जाकोब और स्टेला उन्हे देख, सुन सकते थे लेकिन वे उन्हे देखभी नही सकते थे और सुनभी नही सकते थे.

आप कौन है ?...





                                                                                           


उन्हे कोई सुन नही सकता और देखभी नही सकता यह देखकर जाकोब मायूस हो गया था. वह स्टेलाके सामने जा खडा हो गया और हताशासे बोलने लगा -

'' मेरा संशोधन जहां तक डॉ. स्टिव्हन हॉल्स संशोधन करते हूए पहूंच गए थे और जहांसे आगे वह बढ नही पा रहे थे, वहां तक पहूंच गया था. ''

स्टेलाने जाकोबकी आंखोमें देखा. उसे अपने पतीके बारेमें गर्व महसूस हो रहा था.

'' सिर्फ कृत्रिम जग बनानाही काफी नही था ... तो औरभी बहुत कुछ बाकी और जरुरी था '' जाकोबने आगे कहा.

'' जैसे ?'' स्टेलाने पुछा.

'' जैसे ... जैसे उन्होने कृत्रिम जग बनाए थे... वैसेही कुछ सचमुछके जग का भी अस्तित्व होना चाहिए ''

'' हां ... तूमने मुझे यह पहलेभी एकबार बताया था '' स्टॆलाने कहा.

'' इसीलिए तो ... उस सचमुछके दुनियामें प्रवेश करनेका और वहांसे वापस आनेका कोई तो रास्ता होना चाहिए...वह रास्ता ढूंढनाभी इस संशोधनके एक हिस्सेके तौर पर उतनाही महत्वपुर्ण है ... अगर वह रास्ता नही मिला तो डॉ. स्टिव्हन हॉल्सने किए संशोधनका कोई मतलब नही बनता ... या यूं कहीए उसके सिवा यह संशोधन अधूरा है '' जाकोबने कहा.

अब वह बुढा आदमी उनके पास आकर उनके साथ शामील हो गया.

'' माय डियर... इस दुनियामें कुछभी अधुरा नही है ... हर एक चिजका उसका अपना एक अंत निर्धारीत किया हुवा है '' वह बुढा बोला.

जाकोब उस बुढेकी तरफ ध्यान ना देते हूए स्टेलाकी तरफ एकटक देखते हूए बोला,

'' लेकिन अब हम अपना संशोधन कैसे जारी रखेंगे ''

'' हां सचमुछ यह मुश्कील है ... अब फिलहाल हम कोई छोटी चिजभी पकड नही पा रहे है '' स्टेलाने कहा.

'' मेरे दोस्त ... अब तूम जहांभी हो ... वहां सब नियम अलग है ... यह पुरी तरह एक अलग दुनिया है '' उस बुढे ने कहा.

'' वह कुछभी हो ... एक बात तो तय है ... की वह संशोधन पूरा करनेके लिए हमें फिरसे वापस अपनी दुनियामें जाना चाहिए '' जाकोबने पक्के निर्धारके साथ कहा.

वह बुढा अब गुढतासे बोलने लगा था -

'' कोई एक ज्ञात अज्ञात ढूंढनेके लिए निकला

ढूंढेगा वह अज्ञात जी जानसे खेलकर फिरभी

दुनिया को वह कैसे बतायेगा अगर वह खुद अज्ञात हो चला''

'' वापस अपनी दुनियामें जाना ? ... माय डियर... बदकिस्मतीसे पहलेकी दुनियामें जाना मुझे तो मुमकिन नही लग रहा है '' वह बुढा बोला.

लेकिन अब जाकोबसे रहा नही गया, उसने पलटकर उस बुढेकी आंखोसे आंखे मिलाते हूए गुस्सेसे देखते हूए पुछा,

'' मुमकिन क्यो नही होगा ?''

'' क्योंकी ऐसा पहले ना कभी हुवा है ना भविष्यमें होगा ...'' उस बुढेने जवाब दिया.

जाकोबने ध्यानसे और उत्सुकतासे उस बुढेकी तरफ एकटक देखते हूए पुछा,

'' बाय द वे... आप कौन है ?... और आप हमारे पिछे क्यों लगे हो ?... मेहरबानी करके हमें हमारी स्थितीपर छोड दो '' जाकोबने झल्लाकर कहा.

'' मै डॉ. स्टिव्हन हॉल्स हूं '' उस बुढेने गुढतासे कहा.